कल यानी 19 अप्रैल को प्रथम चरण में उत्तराखंड की पांचों संसदीय सीटों पर मतदान होना है। जिसके बाद 55 प्रत्याशियों का फैसला ईवीएम में कैद हो जाएगा। देखना होगा कि 4 जून को किसकी किस्मत चमकेगी और जनता किसे अपना नेता चुनेगी। हालांकि सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत को लेकर दम भर रहे हैं, लेकिन इस चुनावी माहौल कुछ उदासीन है। अभी तक चुनाव जैसा अहसास नहीं हुआ। पिछले चुनावों में जिस तरह का माहौल चुनाव प्रचार के दौरान दिखता था और जैसी गर्माहट घुलती थी, वह इस बार नदारद रही।
ऐसा नहीं कि माहभर के अभियान के दौरान चुनाव प्रचार नहीं हुआ, लेकिन स्वरूप कुछ अलग ही रहा। चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों के साथ ही स्टार प्रचारक सभाएं भी कर गए। वादों-दावों की पोटली भी खुली, लेकिन वातावरण शांत-शांत सा रहा। न चुनावी शोर गूंजा और न झंडे-डंडों को लेकर कहीं मारामारी दिखी। पिछले चुनावों के आलोक में उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो यहां परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस व भाजपा के मध्य ही भिडंत होती आई है। इस बार की तस्वीर भी ऐसी ही दिख रही है, लेकिन पिछली बार तक जिस तरह से चुनावी पारा चढ़ता रहा है, वह गायब था। माहौल गर्माने को बहुत अधिक प्रयास भी होते नजर नहीं आए। आखिर ऐसा इसके पीछे क्या वजह रही, इस पर पंचायत रिपोर्टर पर सुनिए उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार पवन लाल चंद और गजेंद्र सिंह रावत से खास बातचीत