उत्तराखंड जनजाति निदेशालय के एक सरकारी आदेश ने जनजातियों के लिए बने आश्रम पद्धति के स्कूलों मे दलित छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस आदेश से सबसे ज्यादा प्रभावित देहरादून का चकराता ब्लाक है। 11 सितंबर 2023 के दिन समाज कल्याण विभाग ने इस ब्लाक के सभी आश्रम पद्धति के स्कूलों को जनजाती निदेशालय के एक पत्र का हवाला देते हुए उस पर कर्यवाही करने के निर्देश सभी प्रधानाचार्यों को दिए। जिसके बाद इस पूरे इलाके के एससी बच्चों को स्कूल में दाखिला देने से मना कर दिया गया है। इसके पीछे एक 2017-18 की एक ऑडिट रिपोर्ट का हवाला दिया जा रहा है। जिसमें हरिपुर के आश्रम पद्धति के विघालय का आडिट किया गया है। इसमें ये लिखा गया है कि 83 लाख से ज्यादा कि राशि अनुसूचित जाती के छात्रों पर अनुचित व्यय कर दिए गए हैं। ये व्यय उनके दिए गए भोजन, मुफ्त शिक्षा, कपड़े, आवास और किताबों का है। ऑडिट रिपोर्ट का कहना है कि अनुसूचित जाती के बच्चों के लिए सरकार से फंड जारी हुआ है तो वह सिर्फ उन्हीं पर खर्च होगा। शेडयूल कास्ट के छात्रों पर ये धनराशि खर्च नहीं की जा सकती है।
इस सरकारी आदेश ने इस इलाके के दलित के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। ऐसा ही संकट त्यूणी की रेखा देवी पर खड़ा हो गया। वो विधवा हैं। उनके तीन बच्चे हैं। त्यूणी के आश्रम पद्धति के स्कूल में अपने बेटे को दाखिला दिलाने के लिए ले गईं तो वहां से उन्हें ये कहकर वापस लौटा दिया कि वो अनुसूचित जाती वर्ग से नहीं आती हैं। इसलिए दाखिला नहीं दिया जा सकता है।
वहीं जब इस बारे में हमने जनजाति निदेशालय के निदेशक संजय टौलिया से बात की तो उन्होंने बताया कि जनजाति वर्ग पर खर्च किया जाने वाला फंड अनुसूचित जाति पर नहीं किया जा सकता। हालांकि अब इसका विरोध होने के कारण वो यह भी कह रहे हैं कि दाखिले की पुरानी व्यवस्था दोबारा बहाल करने के लिए शासन को पत्र लिख दिया है। लेकिन इस प्रक्रिया में कितना समय लग जाए अभी कुछ पता नहीं।
अप्रैल महीने में नए शैक्षिणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है। और अभी भी 6 आश्रम पद्धति के स्कूलों में से 3 में 229 सीटें खाली है। वाजिब तो यही है कि ये सीटें खाली रह जाए इससे अच्छा इनमें अन्य छात्रों को दाखिला दे दिया जाए।