क्या प्रदेश की धामी सरकार ने खनन में नया खेल कर दिया है ? क्या अपनी खनन नीती में वो सुप्रीम कोर्ट कि पुराने आदेशों का जानबूझकर उल्लंघन कर रही है ? The Reporter Collective नाम की एक वेबसाईट ने 2 जुलाई को एक खबर प्रकाशित की है । जिसमें धामी सरकार की खनन नीति को लेकर कई गंभीर आरोप इस रिपोर्ट में लगाए गए हैं ।
वेबसाईट ने दावा किया है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का लगातार उल्लंघन कर रही है , जिसमें नदी खनन से प्राप्त राजस्व को वन संरक्षण के लिए उपयोग करने की बात कही गई थी। इसके बजाय, उत्तराखंड सरकार ने इन फंड्स को डायवर्ट कर दिया है, जिससे खनन गतिविधियों से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए आवश्यक पारिस्थितिकी प्रयासों को नुकसान पहुंचा रहा है ।
हितों के टकराव का मामला उठाते हुए खबर में कहा गया है कि ,खनन की राँयलटी एकत्र करने का ठेक एक निजी कंपनी को दिया गया है ।
उत्तराखंड के जून 2023 में अधिसूचित खनन नियमों के अनुसार, रॉयल्टी संग्रहण के लिए चुनी गई कंपनी को खनन पट्टे वाले क्षेत्रों में प्राथमिकता प्राप्त होगी। उत्तराखंड के नियमों की धारा 69 (iv) निजी कंपनियों को खनन पर कर संग्रहण में प्राथमिकता देती है।
वन क्षेत्रों के भीतर नदी के किनारे खननकर्ताओं से रॉयल्टी संग्रहण में उन मार्गों पर चेक-पोस्ट चलाने की आवश्यकता होती है जिनसे खननकर्ता बोल्डर और बजरी ले जाते हैं। इस कार्य को अब विनियमनों द्वारा निजी कंपनियों को सौंप दिया गया है जो खननकर्ताओं की निगरानी करने के लिए बोली लगाती हैं।
इतना ही नहीं The Reporter Collective की इस रिपोर्ट में दावा किया है कि रॉयल्टी संग्रहण का कार्य करने वाली कंपनी अपने स्वयं के चेक-पोस्ट स्थापित करने के लिए अनुमति मांग रही है। रॉयल्टी संग्रहण हैदराबाद स्थित निजी कंपनी पावर मेक प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को आउटसोर्स किया गया था। यह तब हुआ जब कंपनी ने नैनीताल, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और देहरादून के चार जिलों में खनन की गई नदी की सामग्री से रॉयल्टी संग्रहण का ठेका पांच सालो के लिए इस कंपनी ने हासिल किया कंपनी राज्य को 303.52 करोड़ रुपये की एकमुश्त राशि देगी जबकि शेष उसे उसके मुनाफे के रूप में मिलेगा।
रिपोर्ट दावा करती है कि अभी तक प्रदेश में वन क्षेत्रों में होने वाले खनन की निगरानी वन विकास निगम और राजस्व विभाग के पास था । लेकिन सरकार ने ये काम अब एक निजी कंपनी को दे दिया है ।
रिपोर्ट में ये अंदेशा जताया जा रहा है कि राज्य सरकार ने अपने नियामक कार्यों का निजीकरण नहीं किया है बल्कि हितों के टकराव को संस्थागत बना दिया है। एक नियम के रूप में, यह कहता है कि राज्य रॉयल्टी एकत्र करने वाली निजी कंपनियों को प्राथमिकता देगा जो यदि वे इसके लिए बोली लगाते हैं तो नदियों का भी खनन करेंगे ।
इस रिपोर्ट में ये भी स्पष्ट किया गया है कि इन सभी सवालों और दावों के लेकर वेबसाईट ने सी एम कार्यलय ,वन विभाग और अन्य सम्बंधित विभागों से जवाब मांगे लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिले ।