उत्तराखण्ड राज्य में बेहतर नीतियों ,योजनाओं और पॉलिटिक्ल लीडरशिप की बात की जाती है तो हमेशा तुलना पर्वतीय राज्य हिमाचल से कि जाती है । हिमाचल प्रदेश में लागू नितियाँ उत्तराखण्ड में भी लागू होती तो सूबे की तस्वीर कुछ और होती ,ये लाईनें प्रदेश के बुद्धीजीवियों जुबान से अक्सर सुनी जाती हैँ। लेकिन एक मामले में उत्तराखण्ड पूरे देश में सिरमौर बना । 2018 में त्रिवेंद्र रावत सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए भांग के बेहतर औघोगिक उपयोग के लिए 2016 की नीति को और मजबूत किया जिसके बाद अब इस नीति को हिमाचल सरकार अपने राज्य में लागू करने जा रही है । लेकिन 6 साल बाद जो नीति हिमाचल भांग,हैंप या फिर कैनाबिस के लिए लाने जा रहा है । उससे करोड़ों का निवेश जो उत्तराखण्ड आने की राह तक रहा था हिमाचल का रुख करने वाला है । इसकी बड़ी वजह उत्तराखण्ड सरकार का निर्णय ना ले पाना है ।
उत्तराखण्ड में भांग के औघोगिक उपयोग के लिए तो नीति बनाई है । लेकिन उसके व्यापक चिकत्सीय उपयोग को मौजूदा नीति बंदिशे लगा रही है । वही चिकित्सीय उपयोग से अलग से एक नीति लगभग तीन सालों से कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार कर रही है । इस नीति का ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है । उघान विभाग के सगंध पौधा केंद्र ने इसका ड्राफ्ट तैयार किया है । उधर हिमाचल ने 6 सितंबर को विधानसभा में भांग के व्यवसायिक और चिकित्सीय उपयोग को कानूनी अमलीजामा पहनाए जाने को लेकर प्रस्ताव पारित किया है । ये प्रस्ताव भांग को कानूनी दर्जा देने के लिए बनाई एक कमेटी द्वारा लिया गया । जिसके चैयरमेन हिमाचल के राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी हैं । जिसके बाद भांग के मैडिकल उपयोग से जुडी बडी कंपनियाँ अब हिमाचल का रुख करने के तैयारी कर ली है । कनाडा और इजरायल की बड़ी कंपनियाँ इस क्षेत्र में निवेश करने को लेकर लंबा इंतजार करती रहीं । ऐसी ही एक कंपनी के सूत्र ने बताया है कि अब वो हिमाचल की तरफ रुख करने जा रहे हैं । साल 2018 में एक इजरायली कंपनी ने तात्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिलकर निवेश का आशवासन भी दिया था । लेकिन अब कई ऐसी कंपनियाँ सालों के इंतजार के बाद उत्तराखण्ड छोड़ हिमाचल में निवेश की सोच रही हैं ।
दरअसल भांग जिसे कैनाबिस भी कहते है इसका चिकत्सीय उपयोग का बाजार लगातार बढता जा रहा है । मार्च 2024 में फोर्ब्स मैग्जीन में छपी एक खबर के अनुसार 2028 तक मैडिकल कैनाबिस का बाजार दुनिया में 58 बिलियन डाँलर का हो जाएगा । साल 2024 से 2029 के बीच 2.10% की वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) की भविष्यवाणी की गई है, जिसके परिणामस्वरूप 2029 तक बाजार का आकार 22.46 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
वैश्विक स्तर पर चिकित्सा कैनाबिस उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जिसमें अमेरिका प्रमुख भूमिका निभा रहा है। यहाँ बाजार विकास और निवेश के अवसरों में तेजी से वृद्धि हो रही है।
भारत में भी मेडिकल कैनाबिस का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और 2023 में इसने 8.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व उत्पन्न किया। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2030 तक यह बाजार 190.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। इस अवधि में, बाजार की वृद्धि दर (CAGR) 55.3% रहने की संभावना है।
2023 में, कैनाबिस से बने उत्पादों में सबसे अधिक राजस्व तेल और टिंचर से आया। इन उत्पादों का उपयोग दवा के रूप में किया जा रहा है, विशेष रूप से दर्द प्रबंधन और अन्य चिकित्सकीय आवश्यकताओं के लिए।
व्यवसायिक और मैडिकल कैनाबिस में अंतर
उत्तराखण्ड में जो व्यवसायिक प्रयोग के लिए जो नीति बनी है वो नीति भांग के व्यापक मैडिकल प्रयोग को रोकती है । दरअसल भांग के व्यवसायिक उपयोग के लिए जो नीति लागू है उसमें भांग के पौधे के तने का प्रयोग में लाया जाता है । इसके रेशों से धागे और उसके बॉय प्रौडेक्ट से निकले औषधीय तत्वों कुछ दवाईयाँ बनाई जाती है । लेकिन इसमें उन्ही पौधों का प्रयोग में लाया जा सकता है जिसमें Tetrahydrocannabinol(THC) की मात्रा 0.3% या उससे कम होनी चाहिए । वहीं चिकत्सीय उपयोग के लिए भांग में Tetrahydrocannabinol(THC) की सीमा अलग होगी तभी उससे दवाईयाँ बनाई जा सकती हैं । इस नीति का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है लेकिन सरकार इस पर कैबिनेट की मुहर नहीं लगा पा रही है ।
दुनिया में इस समय भांग से बनी दवाईयों की मांग तेजी से बढ रही है । इसका एक कारण ये भी है कि इसका कोई विपरीत प्रभाव शरीर पर नहीं पडता है । बल्कि कीमो थैरपी के साईड इफैक्टस को कम करता है ।
पहाडों मे रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए मैडिकल कैनबिस बेहद प्रभावी हो सकता है । इससे किसी तरह प्रदूषण पैदा नहीं होता । साथ ही पहाडों के लिए ये उघोग सबसे मुफीद भी है । लेकिन नीति लागू ना होने के चलते एक बड़ा अवसर उत्तराखण्ड के हाथ से निकल सकता है ।