चार धाम यात्रा जिसे सूबे की आर्थिकि का सबसे महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। वहाँ से कई डराने वाली तस्वीरें पिछले दिनों देखने को मिली। बाहर से आए श्रद्धालु उत्तराखण्ड मुर्दाबाद के नारे लगाते देखे गए, तो कहीं सरकारी बदइंतजामी का हाल बताते हुए तीर्थयात्री नजर आए। यहां तक की कई श्रद्धालुओं को बिना दर्शन किए ही वापस लौटना पड़ा। इन तस्वीरों के पूरे देश में फैल जाने के बाद और राष्ट्रीय मीडिया में जमकर चार धाम यात्रा की बदइंतजामी की कवरेज से सरकार की आंखे खुली हैं। सीएम खुद अब यात्रियों के बीच पहुँच रहे हैं। लेकिन अब बहुत देर हो गई है। हालत ये है कि भारत सरकार के गृह विभाग को हस्तक्षेप करना पड़ा और कहना पड़ा हम इसकी मौनिटरिंग करेंगे।
दरअसल,10 मई से उत्तराखंड चारधाम यात्रा शुरु हुई और सरकार के इंतजामों की पोल खुल गई। यमनोत्री, गंगोत्री और केदारनाथ से भीड के समंदर की तस्वीरें सामने आने लगी। केदारनाथ में तो 18 दिनों में पांच लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन किए हैं। यमनोत्री पैदल मार्ग पर जाम जैसे हालात बन गए। यात्रा मार्ग पर कई घंटों का जाम लगा रहा। ट्रैफिक और भीड़ दोनों प्रशासन के नियंत्रण से बाहर हो गए। जिसके बाद अधिकारियों ने ये कहना शुरु कर दिया कि यात्री बड़ी संख्या में धामों में पहुँच गए। मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ये कहती हैं कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु चारधाम यात्रा में आ गए हैं इसलिए हालता बिगड़े।
लेकिन क्या इस संख्या का अंदाजा सरकार और उसके अधिकारियों को नहीं था। सीजन की शुरुआत से पहले ही खुद सीएम ये कह रहे थे कि इस बार यात्रियों की संख्या सारे रिकोर्ड तोडने वाली है। खुद 13 मई के दिन सीएम ने ट्वीट किया “चारधाम यात्रा 2024 नए कीर्तिमान स्थापित करने के लिए तैयार है। देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उत्तराखंड पहुंच रहे हैं। हमारी सरकार सुगम एवं सुरक्षित चारधाम यात्रा हेतु धरातल पर क्रियाशील है।” ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों रिकॉर्ड तोड़ यात्रियों के मैनेजमेंट के लिए इंतजाम नहीं किए गए।
गौरतलब हो कि पिछले साल यानी 2023 में 50 लाख से ज्यादा श्रद्धालु यात्रा में आए थे। ये उत्तराखंड की कुल आबादी का लगभग आधा है और इस बार तो इससे भी कहीं ज्यादा यात्रियों के चारधाम पहुँचने की उम्मीद खुद सरकार को थी।
सरकार की तरफ से कहा गया कि यात्रा में आने के लिए ऑन लाईन रजिस्ट्रशन जरुरी होगा। 15 अप्रैल को रजिस्ट्रेशन खोला गया और 13 मई आते आते लगभग 25 लाख से ज्यादा लोगों नें रजिस्ट्रेशन करवा लिया। वहीं 8 मई से आफ लाईन रजिस्ट्रेशन भी सरकार की तरफ से शुरु किया गया और 14 मई तक 1 लाख 40 हजार लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवा लिए थे। ये जानकारी खुद गढवाल कमीशनर विनय शंकर पांडे दे रहे थे।
यात्रा का लेकर बैठकों का दौर फरवरी महीने से ही शुरु हो गया था। ऐसी ही एक बैठक में मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने निर्देश दिए थे की मार्ग में इंन्फ्रस्ट्रकचर दो महीनों में तैयार कर लिए जाए। लेकिन 10 मई तक गंगोत्री धाम के यात्रा मार्ग पर ऐसी कई जगह काम अभी भी चल रहा था जहाँ सड़क बेहद संकरी थी।
ऐसी ही एक बैठक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 7 मार्च को ली जिसमें चारधाम यात्रा की तैयारियों एवं मॉनिटरिंग हेतु कमेटी गठित किए जाने के निर्देश दिए। लेकिन कमेटी बनने के आदेश हुए 24 मई को। चार धाम यात्रा से जुड़ी एक बैठक में सीएम ने इसके आदेश दिए कि एसी एस आनंद वर्धन की अध्यक्षता में ये कमेटी बनाई गई।
ट्रैफिक संभालने की जिम्मेदारी जिलों के पुलिस कप्तान और डीप्टी एसपी को दी गई। लेकिन यमनोत्री और गंगोत्री धाम से जब ट्रेफिक जाम की तसवीरें आने लगी सरकार के हाथ पांव फूल गए और आनन फानन में मुख्यमंत्री के सचिव मिनाक्षी सुंदरम को गंगोत्री और यमनोत्री धाम में कैंप करने को कहा गया।
दरअसल चार धाम यात्रा में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं और इसमें गढ़वाल के सभी 7 जिले सम्मलित होते हैं। 1 हजार किलोमीटर से ज्यादा की ये यात्रा होती है। ऐसे में सिर्फ जिलाधिकारियों के भरोसे पूरी यात्रा नहीं छोड़ी जा सकती। खास तौर पर सवाल प्रदेश की साख का हो तो। इसके अलावा 7 जिलों की ट्रैफिक व्यवस्था का भार जिलों के पुलिस अधिकारियों के उपर नहीं डाला जा सकता। इसके लिए एक सैंट्रलाईज सिस्टम होना चाहिए। अगर सही समय पर सटीक आंकलन सरकार और उसके बाबूओं ने किया होता तो पहले ही किसी बड़े अधिकरी को ग्राउण्ड़ पर भेजा होता। जिससे आज प्रदेश की छवी पूरे देश में खराब ना हुई होती।
चार धाम यात्रा की शुरुआत के बाद ऐसा लग रहा था सरकार अपने निर्णय आपा धापी में ले रही है। किसी तरह कि प्लानिंग उनके निर्णयों में दिखाई ही नहीं दी। ऐसा ही निर्णय आफ लाईन रजिस्ट्रेशन को लेकर था। अचानक से 31 मई तक रजिस्ट्रेशन बंद कर दिए जाने की वजह से कई यात्री बेहद परेशान हुए। कई ऋषिकेश में ही रुक गए। तो कईयों को धामों के आधे रास्ते से वापस आना पड़ा। जो निर्णय सरकार ने 15 मई के बाद लिए वो अगर पहले लिए होते तो मुख्यमंत्री धामी को डैमेज कंट्रौल के लिए सडक पर नहीं उतरना पड़ता। ये सरकार की बदनामी तो है ही, अफसरों की नाकामी भी है। और अब जो निर्णय सरकार ले रही है उससे स्थानीय लोगों में रोष है। सरकार अब जगह जगह यात्रियों को रोक रही है। जिससे धामों पर यात्रियों का दबाव कुछ कम हो सके। लेकिन स्थानीय लोग इससे बहुत नाराज हैं ।
आखरी समय पर बिना आंकलन किए निर्णय लेना का असर साफ तौर पर श्रद्धालुओं की परेशानी के रुप में दिख रहा है तो अब स्थानीय लोगों में भी फैसलों के लेकर रोष है।