भोलेनाथ की नगरी केदारनाथ को श्रद्धा और आस्था की नगरी भी कहा जाता है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां बाबा का आशीर्वाद लेने आते हैं। लेकिन आज से ठीक दस साल पहले भोलेनाथ की नगरी केदारनाथ धाम का वो प्रलयकारी मंजर…..जिन्होंने प्रत्यक्ष देखा, उनकी आंखों में हमेशा के लिए समा गया जिसने सुना, बिसरा नहीं सका और जिसने भोगा उसके घाव आज भी हरे हैं। आपदा में कितनों के तो मृत शरीर भी नहीं मिले, कितनों की बर्फ में जीवित समाधि बन गई तो कितनों की जल समाधि, कोई आंकड़ा कभी पूरा न हो सका। प्रलय में सैंकड़ों मौतें हुईं, सैकड़ों लोग लापता हो गए और उनमें कुछ का पता आज तक नहीं चला।
एक दशक पहले केदारनाथ में जल प्रलय के बाद अब पुनर्निर्माण कार्यों से केदारपुरी सज और संवर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट से आपदा के जख्म भर रहे हैं। आपदा के बाद 225 करोड़ रुपये के काम किए गए। अभी काफी कुछ होना बाकी है। लेकिन अभी भी हादसे के निशान पहाड़ों की ढलानों पर दिखते हैं। हालांकि सरकार इन्हें भरने के लिए काफी प्रयास कर रही है।
भले ही केदारनाथ बहुत बड़ी त्रासदी से गुजर चुका है लेकिन यहां पर हर साल भारी संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं। अब धाम में पहले के मुकाबले काफी बेहतर सुविधाएं भी उपलब्ध हैं…. केदारनाथ धाम भव्य हो गया है। चारों ओर सुरक्षा की दृष्टि से त्रिस्तरीय सुरक्षा दीवार बनाई गई है। मंदाकिनी और सरस्वती नदी में बाढ़ सुरक्षा कार्य किए गए हैं। इतना ही नहीं केदारनाथ यात्रा के पहले पड़ाव गौरीकुंड से लेकर धाम तक की पैदल दूरी अब 19 किलोमीटर हो गई है, लेकिन यह मार्ग तीन से चार मीटर चौड़ा किया गया है। इसके अलावा अब तक के बदलाव में 2022 के बाद अब इस वर्ष 2023 भी तीर्थ यात्रियों का सैलाब उमड़ रहा है और रोजाना 20 हजार से ज्यादा तीर्थयात्री दर्शन को पहुंच रहे हैं।
आस्था के साथ बढ़ते पर्यटन के कदमताल ने प्रकृति के साथ प्रशासन को भी बेहाल कर दिया है। प्रलय के बाद भी आस्था में कोई कमी नहीं आई, श्रद्धालुओं की संख्या हर साल यात्रा में नए आयाम स्थापित कर रही हैं लेकिन इन सब के बीच इसपर अक्सर बात होती है कि आखिर आपदा की असल वजह क्या थी. ज्यादातर लोग बारिश और भूस्खलन को इसकी वजह मानते हैं, वहीं विशेषज्ञों के मुताबिक पहाड़ों पर लोगों की बढ़ती आमद, प्रदूषण, नदियों में प्लास्टिक का जमा होना, नदियों के रास्ते यानि फ्लड-वे में इमारतें बनाने को इस भयावह मंजर का जिम्मेदार मानते हैं. यानी विशेषज्ञों के मुताबिक ये कहर प्राकृतिक कम और मानवजन्य ज्यादा था।वहीं इन सवालों में सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि प्रकृति के इस प्रलयकारी तांडव से हमने सबक सीखा या नहीं?