लेटरल एण्ट्री में आरक्षण को लेकर इस समय देश में सियासी घमासान मचा हुआ है । केंद्र सरकार ने इस मामले की गंभीरता भांपते हुए अपने फैसले को वापस ले लिया है । लेकिन नियुक्ति में आरक्षण से मिलता जुलता एक मामला उत्तराखण्ड में उभरता हुआ दिखाई दे रहा है ।
17 अगस्त की कैबिनेट बैठक में राज्य सरकार प्रदेश में सारे संविदा (काँन्ट्रैक्ट) पर 10 साल से ज्यादा काम कर चुके कर्मचारियों को पक्का करने का फैसला लिया । लेकिन इससे आउटसोर्स कर्मचारियों को बाहर रखा है । जिसके बाद इस फैसले को शक की नजरों से देखा जाने लगा है । उत्तराखण्ड एस सी एस टी कर्मचारी संगठन ने सरकार से मांग रखी है कि अपने इस फैसले में वो आरक्षण को दर किनार ना करे । संगठन के अध्यक्ष करम राम का कहना है उनको जो जानकारी मिल रही है सरकार सीधी भर्ती में आरक्षण का रोस्टर नहीं लागू कर रही है । उन्होने आरोप लगाया कि संविदा में जिन लोगों का विनियमितिकरण होता है उसमें हमेशा ‘Pick And Choose ‘ का फारर्मूला लगाया जाता है । उनके कहने का अर्थ था कि ऐसे समायोजन में अपने चहेतों को वरियता दी जाती है और आरक्षण लागू नहीं किया जाता है । उन्होने कहा कि सरकार अपनी नियमावली में अगर आरक्षण का रोस्टर लागू नहीं करेगी तो वो इसका विरोध करेंगे ।
विरोध के स्वर आउटसोर्स कर्मचारियों की तरफ से भी उठने लगे है । उत्तराखण्ड विघुत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि ने कहा कि उपनल से जो लोग संविदा में रखे गए हैं उनमें भेदभाव क्यों किया जा रहा है । इसमें हर विभाग अपने अनुसार निर्णय लेता है । हाल ही में सरकार के कैबनिट निर्णय में ये कहा गया कि आउटसोर्स कमर्चारियों को विनियमतिकरण के दायरे से बाहर रखा जाएगा । लेकिन कई विभाग ऐसे है जिन्होने आउटसोर्स कर्मचारियों को संविदा पर रखा है और कुछ विभागों ने उनका नियमितीकरण भी किया है ।विघुत संविदा कर्मचारी संगठन ने सरकार से आग्रह किया है कि नियामावली बनाते समय उनके संगठन को सरकार विशवास में लें । ऐसा ना करने पर उन्होने सड़क पर उतरने की चेतावनी भी दी है ।
दरअसल विरोध यहाँ सरकार के फैसले का नहीं है । विरोध विभागों की मनमानी का है । संविदा पर 15 से 20 साल से भी ज्यादा काम कर चुके कर्मचारियों में इस बात की नाराजगी है कि संविदा और नियमतिकरण में भेदभाव किया जाता रहा है ।
दरअसल उपनल से रखे गए संविदा कर्मियों के विनियमितीकरण के लिए साल 2011,2013,और 2016 में नियमावली लाई गई थी । चूंकि 2002 और 2003 में राज्य सरकार ये आदेश निकाल चुकी थी कि कोई भी विभाग दैनिक वेतन ,तदर्थ और संविदा पर कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं करेगा। इस शासनादेश में यू पी सरकार के 1992 और 1994 के शासनादेशों का भी जिक्र किया गया है ।
साल 2003 में जो शासनादेश आया इसमें शासन नियुक्ति के लिए एक छूट जरुर दी गई थी । जिसमें ये कहा गया था कि बेहद जरुरी परिस्थितियों में ही नियुक्ति की जा सकती है । लेकिन ये नियुक्ति पूरी तरह से अल्पकालिक होगी । और ये नियुक्ति भी विभाग नहीं करेगा । इसके लिए विभाग को एक प्रस्ताव कार्मिक विभाग को भेजना होगा । कार्मिक विभाग इसका परिक्षण करने के बाद इसे कैबिनट को भेजेगा और कैबिनेट के अनुमोदन के बाद ही ऐसी अल्पकालिक नियुक्ति की जाएगी।
यही नहीं इस आदेश में साफ लिखा है अगर इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो इसे गंभीर कदाचार माना जाएगा और वेतन भी काटा जाएगा ।
इसके बाद संविदा पर कर्मचारी रखे जाने के लिए साल 2004 में “उपनल” का गठन किया गया । और विभागों की, संविदा कर्मचारियों की दरकार उपनल द्वारा ही पूरी किए जाने के आदेश हुए ।
लंबे समय तक सरकारी विभागों में काम करने के बाद मांग उठी कि इन संविदा कर्मचारियों का नियमतिकरण किया जाए । इसके लिए 2011 फिर 2013 और 2016 में नियम बनाए गए । लेकिन इसके बावजूद भी कई उपनल के कर्मचारियों का विनियमतिकरण नहीं किया गया । उन्हें कह दिया गया कि वो आउटसोर्स कर्मचारी हैं । 15 से 20 साल तक अपनी सेवाऐं देने वाले ये कर्मचारी अब खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं ।
ऐसा ही एक पत्र उत्तराखण्ड पावर कारपोरेशन लिमिटेड का सामने आता है । जिसमें इस बात का सहारा लिया गया है कि 2013 की विनयमतिकरण नियमावली में उपनल के जरिए विभागों में संविदा पर लगे कर्मचारियों का कोई जिक्र नहीं है । अब ऐसे में सवाल उठता है कि 2013 की नियमावली फिर बनाई किन कर्मचारियों के लिए गई है । क्योंकि 2003 के शासनादेश के बाद संविदा कि नियुक्तियाँ रोक दी गई है । और 2004 से उपनल के माध्यम से ही संविदा कमर्चारियों की नियुक्तियाँ की जा रही हैं ।
ऐसे में उपनल के अलावा कौन से संविदा कर्मियों कि बात यू.पी.सी.एल कर रहा है ।
लेकिन उपनल के हजारों कर्मचारियों को आउटसोर्स का तंमगा लगा कर जिस समय विनियमतिकरण से दूर रखा जा रहा था । ठीक उसी समय कई विभाग उपनल से ही भेजे गए कई कर्मचारियों का नियमतिकरण भी कर रहे थे और कुछ विभाग उन्हे अपने विभाग में संविदाकर्मी के रुप में समायोजित कर रहे थे ।
ऐसे अलग अलग विभागों में संविदा पर लिए गए और नियममित हुए कर्मचारियों का ब्यौरा हम आपको देते हैं ।
केस नं.1 – उघान विभाग के अंतर्गत आने वाले संगध पौधा केंद्र में 2 जनवरी 2017 को 7 आउटसोर्स कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया है । इस विनियमितीकरण के लिए 2013 और 2016 की नियामावली को आधार बनाया गया । सवाल यही उठता है कि उपनल के ही कर्मचारियों को संविदा मे नियमावली के आधार पर रखा गया और इसी नियमावली के आधार पर हजारों कर्मचारियों को बाहर कर दिया गया ।
केस नं. 2- सैनिक कल्याण और पुनर्वास विभाग में साल 2022 में 96 कर्मचारियों को संविदा पर ले लिया गया । इसका अनुमोदन सीधे कैबिनेट ने दिया ।
केस नं.3- कृषि विभाग के अंतर्गत आने वाली स्टेट सीड् एण्ड ऑर्गनिक प्रोडक्शन सर्टीफिकेशन एजेन्सी ने अपने 48 कर्मचारियों को विभादीय संविदा में समायोजित किया । ये समायोजन बिना कैबिनेट की मंजूरी के हुआ । एजेन्सी ने अपनी बोर्ड बैठक में ये प्रस्ताव पास करवाया और उसके आधार पर विभाग में उन्हें समायोजित कर लिया गया । खास बात ये है कि इसमें एक निजी आउटसोर्स कंपनी हॉक कमॉण्डोज के 13 कर्मचारी शामिल थे । एक निजी ठेकेदार कंपनी से कर्मचारियों को कैसे विभाग ने संविदा में समायोजित कर लिया ये मामला कई सवाल खडे करता है ।
उपनल संविदा कर्मियों के साथ हर विभाग मनमाना व्यवहार कर रहा है ।प्रदेश में 10 ऐसे विभाग हैं जो उपनल द्वारा निर्धारित वेतन से अधिक वेतन इन कर्मचारियों को दे रहे हैं । आर टी आई से मिली जानकारी बताती है कि 3 ऐसे विभाग भी हैं जो निर्धारित वेतन से कम संविदा कर्मियों के दे रहे हैं ।
उत्तराखण्ड पावर कॉरपोरेशन लिमेटेड़ अपने पांच कर्मचारियों को समान काम के लिए समान वेतन दे रहा है । जो कि प्रदेश में किसी संविदा कर्मी को नहीं मिल रहा है । इसके अलावा 4 विभागों में 29 पदों पर ऐसे कर्मियों को समायोजित किया गया है जो निर्धारित पदों से इतर हैं।
ऐसे कई और उदाहरण है जिससे ये पता चलता है कि सरकार उपनल के इन कर्मचारियों का नियमतीकरण कर सकती है । लेकिन वो ऐसा नहीं कर रही है । साथ ही इन विभागों में समायोजित संविदा कर्मियों कि लिस्ट देखी जाए तो साफ दिखाई देता है कि इन सभी मामलों में आरक्षण के रोस्टर को लागू नहीं किया गया है ।
कोर्ट की तरफ से भी कई ऐसे फैसले आए हैं जिसमें उपनल कर्मचारियों के साथ वन टाईम सैटेलमेंट कर इनके विनियमतीकरण के लिए कहा गया है ।
इसके साथ ही साल 2023 में खुद सरकार के एडवोकेट जनरल एस एन बाबूलकर तात्कालीन मुख्य सचिव को पत्र लिख कह चुके हैं कि वो कोर्ट की इस बात से सहमत हैं कि उपनल और अन्य आउटसोर्स कर्मचारियों को सरकार में पक्का कर दिया जाए ।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि साल 2003 में ही संविदा,तदर्थ,नियत वेतन,दैनिक वेतन,अंशकालिक और आउटसोर्स से किए जाने वाली भर्ती पर रोक लगी है तो फिर ये कौन से संविदाकर्मी हैं जिनको सरकार नियमित करने जा रही है ? इस बाबत साल 2023 का एक पत्र खुद अपर मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन का सामने आता है जिसे उन्होने प्रदेश के हर जिलाधिकारी और सचिवालय में बैठे सचिवों को लिखा है। जिसमें इस बात को प्रमुखता से याद दिलाया है ।
इन सारे मामलों को देखते हुए लगता है कि 17 अगस्त को कैबिनेट ने जो फैसला लिया है उसमें उन आउटसोर्स कर्मचारियों को बाहर रखना जो कि 10 साल से ज्यादा विभागों में अपनी सेवाऐं दे रहे है ,उनके साथ ना इंसाफी होगी । क्योंकि कई ऐसे कर्मचारी है जिनका विनियमतीकरण ना ही 2011,2013 और ना ही 2016 में हो पाया है । जबकि वो सारी योग्यताऐं और आहर्ताऐं पूरा करते हैं । और अगर नियमतिकरण की नियामवली जो अब बनेगी उसमें भी उनको निराशा हाथ लगेगी तो एक बार फिर सड़को में आंदोलन के नारे गूंजते हुए दिखाई देंगे ।साथ ही इसमें अगर आरक्षण के रोस्टर को लागू नहीं किया जाता है तो एक सियासी बवाल भी इसमें खड़ा हो जाएगा।
कुल मिलाकर सरकारी और कोर्ट के कई अलग अलग आदेशों ने इस मामले को ऐसी खिचड़ी बना डाला है । जिसमें हर सरकार ने अपनी तरह के आदेशों के मसाले डाले तड़का लगाया और उसका सियासी स्वाद चखा । और एक बार फिर धामी सरकार ने इसमें नियमतिकरण का छौंका मार दिया है । लेकिन आउटसोर्स कर्मचारी कहीं इस खिचड़ी में रायता ना फैला दें ।