केदारनाथ मंदिर को दिल्ली के बौराड़ी में बनाए जाने के मामले में सरकार को हुए डेमेज को कंट्रोल के लिए, कैबिनेट की बैठक में ये निर्णय लिया गया कि एक ऐसा कानून बनाया जाएगा, जिसमें केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के नाम का प्रयोग करने पर सजा का प्रावधान होगा। इस निर्णय के बाद धामों के पुरोहितों के धन्यवाद संदेश सोशल मीडिया में अवतरित हुए। खुद भाजपा के पदाधिकारी और प्रदेश अध्यक्ष ये दावा करने लगे कि ये कानून पूरे देश में लागू होगा।
ये निर्णय लिया तो गया था मामले को शांत करने के लिए, लेकिन इस फैसले ने एक नई बहस को जन्म दिया। दरअसल जो कानून सरकार बनाएगी वो दूसरे राज्यों में कैसे लागू होगा, ये बड़ा सवाल है। उत्तराखण्ड राज्य में बना कानून क्या दूसरे राज्य मानने के लिए बाध्य होंगे? क्योंकि संविधान में कानून बनाने की प्रक्रिया और उसके प्रभाव क्षेत्र को बहुत ही स्पष्ट तरीके से परिभाषित किया गया है।
संविधान की धारा 245 बताती है कि संसद, भारत के किसी भी राज्य या संपूर्ण भारत के लिए कानून बनाने में सक्षम है, जबकि राज्य विधानमंडल अपने सम्बंधित राज्य या किसी भाग के लिए कानून बना सकते हैं। इसके अलावा, संघीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के माध्यम से विधायी शक्तियों का स्पष्ट वितरण भी धारा 245 में किया गया है। और विवाद की स्थिति में केंद्र सरकार का कानून ही स्थापित रहेगा।
हालांकि अभी इस कानून का खाका सामने नहीं आया है। इसलिए इसका स्वरुप क्या होगा और इसमें क्या प्रावधान राज्य सरकार करती है, इसका इंतजार किया जा रहा है। लेकिन ऐसी स्थिति में राज्य सरकार धामों, समितियों, ट्रस्टों के नामों का दुरुपयोग रोकने के लिए क्या कुछ वैकल्पिक कदम उठा सकती है, इस बारे में विस्तार से बताते हुए केदारनाथ के पूर्व विधायक मनोज रावत बताते हैं कि बदरी केदार मंदिर समिति जिस 1939 के एक्ट से अस्तित्व में आई है, वो एक्ट समिति को कई तरह की ताकत देता है। वो बताते हैं कि समिति और सरकार अगर इस मामले में गंभीर है तो उन्हें कॉपीराईट एक्ट का इस्तमाल करना चाहिए। और धामों के नाम का प्रयोग करने वालों को इस एक्ट में नोटिस भेजा जाना चाहिए।
केदारनाथ धाम के नाम के प्रयोग से उत्पन्न इस विवाद को शांत करने के लिए कदम उठाया तो गया लेकिन इसके बाद अब एक नई बहस को सरकार ने जन्म दे दिया है।